इसलिए वापस लाना पड़ा अपना सोनारूस - युक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व के हालात ने बढ़ाई है चिंता
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल के वर्षों में अपने सोने के ८५४.७ टन के भंडार के एक बडे हिस्से को देश में स्थित अपनी तिजोरियों में पहुंचा दिया है। कुल भंडार में से ५१०.५ टन अब केंद्रीय बैंक की विभिन्न तिजोरियों में जमा हैं। इसमें सबसे बडा हिस्सा मुंबई की तिजोरियों में हैं। आरबीआई ने अप्रैल २०२२ से सितंबर २०२४ के बीच लगभग १०० टन सोना अपने भंडार में जोड़ा। सितंबर २०२४ में समाप्त दो वर्षों के दौरान आरबीआई चुपचाप २०१४ टन सोना वापस देश में लाया। वित्त वर्ष २०२३ उसने केवल ५.३ टन सोना देश में वापस लाकर कुल घरेलू भंडारण को ३०१.१ टन तक पहुंचाया। वित्त वर्ष २०२४ में, १०६.८ टन सोना और आने से स्थानीय भंडारण ४०८.३ टन तक पहुंच गया। इस साल धनतेरस के मौके पर केंद्रीय बैंक ने १०२.२ टन सोना इंग्लैंड से वापस लाकर अपनी तिजोरी में रखा, जिससे कुल भंडार ५१०.५ टन हो गया। इसके अलावा भारत का ३१४ टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड की तिजोरियों में, १० टन बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (जो स्विट्जरलैंड और न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व बैंक में स्थित हैं) में और शेष २०.३ टन सोने की प्रतिभूतियों में हैं।
असल में देश के स्वर्ण भंडार पर चर्चा होते ही १९९१ के वाकये का जिक्र अनिवार्य हो जाता है। १९९१ की जनवरी और जुलाई में देश को ८७ टन से अधिक सोना गिरवी रखकर इमरजेंसी विदेशी मुद्रा जुटाने के लिए मजबूर होना पड़ा था, ताकि डिफाल्टर होने से बचा जा सके और आयात - निर्यात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा की व्यवस्था हो सके। उस समय देश का विदेशी मुद्रा भंडार केवल ६० करोड डॉलर रह गया था। यह आज लगभग ७०० अरब डॉलर हैं।
उस समय सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से २.२ अरब डॉलर का आपातकालीन ऋण पाने के लिए ६७ टन सोना गिरवी रखा था, जिसमें से ४७ टन मई १९९१ में बैंक ऑफ इंग्लैंड को $४०५ मिलियन का ऋण प्राप्त करने के लिए भेजा गया था और २० टन मई १९९१ में यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड भेजा गया था।
भुगतान स्थिति में सुधार के बाद, रिजर्व बैंक ने नवंबर - दिसंबर १९९१ में १८.३६ टन सोना खरीदा था। हालांकि ऋण को नवंबर १९९१ तक चुका दिया गया था, फिर भी आरबीआई ने अपने सोने को लॉजिस्टिक कारणों से वहीं रखने का फैसला किया। विदेश में संग्रहीत सोने का उपयोग व्यापार और कुछ लाभ अर्जित करने में आसानी से किया जा सकता है। आरबीआई अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से सोना भी खरीदता है और इसे विदेशों में संग्रहीत करना इन लेदेन को सुविधाजनक बनाता है। इसके अलावा, प्रमाणपत्र के रूप में संग्रहित सोना व्यापार और मुद्रा स्वैप के लिए भी उपयोग किया जा सकता हैं।
इंग्लैंड से सोना देश में वापस लाने की वजह
s कई पर्यवेक्षक का मानना है कि भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच भंडारण को सुरक्षित रखना आवश्यक है। फरवरी २०२२ के अंतिम सप्ताह में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद पश्चिमी देशों ने अपनी जमीन में स्थित रूसी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया था।
s अमेरिका ने एक कदम आगे बढते हुए रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को भी अमान्य कर दिया। इसके अलावा पिछले अक्टूबर से इजराइल तीन युद्ध एक साथ लड रहा है और सरकार में कई लोगों का मानना है कि ऐसे अनिश्चित समय में अपना सोना अपनी तिजोरियों में रखना एक सुरक्षित तरीका हैं।
s ब्रिटिश अर्थव्यवस्था की स्थिति भी आरबीआई की विदेश में सोने की सुरक्षा को लेकर चिंताओं में इजाफा कर रही हैं।
s सोना एक ऐसा साधन है, जिसका उपयोग आरबीआई मुद्रास्फिति के जोखिमों को रोकने के लिए करता है। एक रोक के करूप में कार्य कर सकता है।
s जब मुद्राए अपनी क्रय शक्ति खो देती हैं तो इसका मूल्य बना रहाता है या बढता है। सोने का भंडार रूपये को अवमूल्यन से बचाने में भी सहायक हो सकते हैं, जिससे आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच राष्ट्रीय संपत्ति की रक्ष होती हैं
शक्तिकांत दास
इस सोने को वापस लाने के बारे में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि क्रंद्रीय बैंक ने इंग्लैंड से सोने के भंडार को मुंबई की आरबीआई तिजोरियों में इसलिए स्थानांतरित किया, क्योंकि यहा पर्याप्त भंडारण क्षमता है और इसे लेकर अधिक कुछ नहीं सोचना चाहिए।
Recent Posts
See Allजीजेईपीसी के अध्यक्ष श्री विपुल शाह ने रत्न एवं आभूषण निर्यात को बढ़ाने के लिए की अनेक नए उपायों की घोषणा प्राकृतिक हीरे के कारोबार को...
Comments