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  • Aabhushan Times

लैब ग्रोन डायमंड का बढ़ता बाजार

अब हीरा है सभी के लिए, असली डायमंड से कम नहीं, खो जाए तो गम नहीं













लैब ग्रोन डायमंड नाम तो सुना ही होगा। नाम से ही स्पष्ट है कि  यह ज्वेलरी मार्केट में पहले से ही मौजूद बेशकीमती डायमंड का विकल्प है, जो दाम में भी कम है और आसानी से उपलब्ध भी है।  लैब ग्रोन डायमंड वो डायमंड हैं जो खदान से नहीं निकाले जाते बल्कि लैबोरेट्री में तैयार किए जाते हैं। देखने में तो ये बिल्कुल असली डायमंड जैसे ही होते हैं और दोनों के तत्व भी वही होते हैं, और दिखने में भी दोनों में कोई फर्क नहीं होता। वही चमक, वही दमक और वही लुक। कितना भी रगड़ लो, घिस लो,  लैब ग्रोन डायमंड की चमक कतई नहीं जाएगी। इसके साथ ही सबसे खास बात यह है कि लैब ग्रोन डायमंड में जो डिजाइन व आकार प्रकार मांगोगे वो ही मिलेगी।हां, बस, ये नेचुरल नहीं होता, खदान से निकला नहीं होता और  इसके रेट्स भी बेहद कम है। बाजार में इसे खदान से निकले डायमंड के सब्सटिट्यूट के रूप में देखा जा रहा है। इसी कारण, अब सरकार भी लैब ग्रोन डायमंड को सपोर्ट कर रही हैसरकार मानती है कि लैब ग्रोन डायमंड टेक्नोलॉजी, इनोवेशन और रोजगार को बढ़ावा देने वाला सेक्टर है, साथ ही ज्वेलर्स भी मान रहे हैं कि बाजार में इसकी पसंद बढ़ रही है। लैब ग्रोन डायमंड की तेजी से बढ़ रही घरेलू और ग्लोबल खपत में डबल डिजिट की ग्रोथ नजर आ रही है। मगर,  खास बात यह है कि पिछले कुछ सालों में रियल डायमंड की खपत धीरे-धीरे कम होने लगी है और लैब ग्रोन डायमंड की वजह से रियल डायमंड के कारोबार में तकरीबन 10 पर्सेंट की गिरावट देखी जा रही है।

पिछले कुछ सालों में, लैब में तैयार किए जाने वाले डायमंड का बाजार बहुत तेजी से उभरा है। जिसकी खास बात यह है कि रियल डायमंड अगर पांच लाख रुपये में आता है, तो बिल्कुल उसी के जैसा दिखने वाला लैब में तैयार किया गया डायमंड केवल 25 हजार रुपये में भी मिल जाता है। लैब ग्रोन डायमंड का यह बढ़ता बाजार लगातार बढ़ रहा है। बीते साल की बात करें, तो लैब ग्रोन डायमंड के बाजार में तोजी आने के बाद से अप्रैल - 2023 के बाद रियल डायमंड के एक्सपोर्ट में भी 10 पर्सेंट की गिरावट दर्ज हुई। अमेरिका, यूरोप और चीन में आर्थिक सुस्ती, रूस पर बैन से रफ डायमंड की सप्लाई में कमी आने के बाद से लैब ग्रोन डायमंड का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा है। कुछ साल पहले तक डायमंड ज्वेलरी के कुछ बदनाम निर्माता खदान से निकले डायमंड की जगह लैब ग्रोन डायमंड्स बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते रहे, फिर देश से भाग गए। मगर, अब धीरे-धीरे लैब ग्रोन डायमंड्स को लेकर मार्केट व उपभोक्ताओं में जागरुकता बढ़ रही है और लोग यह भी समझने लगे हैं कि लैब ग्रोन डायमंड्स के बारे में उनको कोई चीट नहीं कर सकता।

आइए सबसे पहले समझते हैं कि लैब ग्रोन डायमंड आखिर बनते कैसे हैं। दरअसल, लैब ग्रोन डायमंड की पूरी निर्माण प्रक्रिया किसी टेस्ट ट्यूब बेबी की तरह है। टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म का प्रक्रिया में स्त्री व पुरुष के सेल्स मिलाकर बच्चा पैदा होता हैं। बिल्कुल उसी तरह से खदान से निकले डायमंड का तत्व लेकर लैब ग्रोन डायमंड बनाए जाते हैं। खदान से निकला असली डायमंड कार्बन से निर्मित होता है। तो, लैब ग्रौन डायमंड को बनाने के लिए वही प्रक्रिया अपनाई जाती है। देका जाए, तो खदान से निकले डायमंड को 763 डिग्री से लेकर 1500 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गरम किया जाए, तो वो जलकर कार्बन डाईऑक्साइड में परिवर्तित हो जाएगा तथा उसकी राख तक नहीं बचेगी। उसके विपरीत कार्बन को जमा करके लैब में कार्बन सीड यानि कार्बन से बने एक बीज के साथ हाई प्रेशर और हाई टेंप्रेचर के साथ ट्रीट किया जाए तो तो हूबहू उसी के जैसा डायमंड तैयार किया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया को समझना हो तो इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि कार्बन से बने एक बीज के साथ हाई प्रेशर और हाई टेंप्रेचर के साथ माइक्रोवेव चैंबर में रखकर तेज तापमान में गरम करके एक चमकने वाली प्लाज़्मा बॉल बनाई जाती है,  इस प्रकिया में चमकदार रंगीन कण बनते हैं जो आपस में मिलकर कुछ हफ्तों बाद डायमंड में बदल जाते हैं। लैब ग्रोन डायमंड लेबोरेटरी में लगभग एक से चार सप्ताह में तैयार हो जाते हैं। ये इको फ्रेंडली है और ऐसे डायमंड की बनावट, चमक, कलर, कटिंग, डिजाइन बिल्कुल खदान से निकले नैचुरल डायमंड जैसी ही होती है और उसे भी कैरेट्स की प्रामाणिकता के सर्टिफिकेट के साथ बेचा जाता है।

डायमंड की सबसे बड़ी ताकत इसकी चमक - दमक है। वह हर किसी को अपने महंगा होने के कारण लुभाता है,  अपनी ओर खींचता है और उसका आकर्षण हर किसी को मोहित करता है। लेकिन सही मायने में कहा जाए, तो महंगी कीमतें खदान से निकले हीरे की खरीद में सबसे बड़ी अड़चन रही है। आज सामान्य लोग भी ज्वेलरी खरीदना तो चाहते हैं, लेकिन तेजी से बढ़ती महंगाई के दौर में ज्यादा पैसे खर्च नहीं कर पाते। खास तौर से डायमंड के मामले में लोग इसलिए भी दूर रहते हैं क्योंकि एक तो उसकी खरीद की कीमतें सामान्य लोगों की पहुंच से बाहर होती है फिर उसकी री सेल वैल्यू  भी कुछ कास नहीं होती। ऐसे में बीते कुछ सालों में खदान से निकले डायमंड की दुनिया भर में सेल में कमी देखी जाने लगी। मगर, इसका मतलब ये तो कतई नहीं हो सकता कि डायमंड की सेल ही बंद हो जाए। इसी वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समाधान निकालने वाली कंपनियों लैब ग्रोन डायमेंड की मैनुफैक्चरिंग शुरू की तथा लैब ग्रोन डायमंड के बाजार में आने के बाद से खदान से निकले रियल डायमंड की कीमतों में भी थोड़ी गिरावट आई हैं। पूरी दुनिया की बात की जाए, तो लैब ग्रोन डायमंड का मार्केट लगभग 22 अरब डॉलर का है और इंडिया में ज्वेलर्स अपनी कमाल की कारीगरी और ज्वेलरी की खासियत के साथ बहुत तेजी से इस लैब ग्रोन डायमंड के बाजार पर अपना रुतबा जमाता जा रहा है। लैब में बनने वाले डायमंड  और खदान से निकले डायमंड की तुलना की जाए, तो खदान से निकले डायमंड को बनने में लाखों साल लगते हैं, लेकिन लैब में बनने वाला डायमंड कुछ हफ्तों में ही बन जाता है।

खदान से निकले डायमंड कीमत काफी ज्यादा होती है, जबकि लैब ग्रोन डायमंड असली डायमंड से 75 फीसदी सस्ता होता है। पर्यावरण के जनकार कहते हैं कि खदान से निकले डायमंड के खनन से वातावरण को नुकसान होता है, जबकि लैब ग्रोन डायमंड इको फ्रेंडली होता है। मगर सबसे कास बात ये है कि खदान से निकले डायमंड की रीसेल वैल्यू ज्यादा होती है, तथा उसकी तुलना में लैब ग्रोन डायमंड की री सेल वैल्यू बेहद कम होती है।

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