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गोल्ड में और बढ़ोतरी तयइंटरनेशनल मार्केट में गोल्ड की डिमांड में लगातार इजाफा

  • Aabhushan Times
  • Oct 8
  • 7 min read
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गोल्ड पर दुनिया की नजऱें फिर से टिक गई हैं। वैश्विक गोल्ड की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी एवं चीन की गोल्ड खरीदारी जैसे बड़े रुझानों से भारत, बहुत गहरे स्तर पर प्रभावित हो रहा है। सरकार की नीतियां, जैसे कि इंपोर्ट ड्यूटी में कुछ महीनों पहले की गई कमी ने जरूर कुछ राहत दी थी और इंपोर्ट को बढ़ावा दिया है। लेकिन गोल्ड की घरेलू एक बार फिर से कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर हैं। गोल्ड के रेट्स जब 1 लाख रूपए प्रति 10 ग्राम के आस पास थे, तो उपभोक्ता खरीदारी में जरूर कुछ दबाव था, क्योंकि खरीददारों को लग रहा था कि गोल्ड नीचे उतरेगा। लेकिन जैसे जैसे गोल्ड के रेट्स 1 लाख 15 हजार के आस पास पहुंचे, तो ग्राहकी खुलने लगी, क्योंकि लोगों को डर है कि गोल्ड और भी महंगा हो सकता है। सितंबर महीने के आखरी सप्ताह में गोल्ड 1 लाख 15 हजार से कुछ ही नीचे बिक रहा था। माना जा रहा है कि गोल्ड की कीमतें और बढ़ेगी, लेकिन ग्राहकी कम नहीं होगी। विशेष रूप से ज्वेलरी की खरीद हमारी सांस्कृतिक एवं सामाजिक परंपरा से जुड़ी है, सो गोल्ड की डिमांड भारत में पूरी तरह नहीं रुकेगी। आने वाले महीनों में यह उम्मीद की जा सकती है कि गोल्ड की कीमतें इंटरनेशनल मार्केट सहित भारत में अभी और ऊंचीं होंगी, क्योंकि इसकी वैश्विक मांग और बढ़ती जा रही है साथ ही खनन से आपूर्ति में भी तेजी नहीं आ रही। माना जा रहा है कि गोल्ड की डिमांड में अंतर होगा, क्योंकि ज्वेलरी में गोल्ड कम सेल होगा, मगर इन्वेस्टमेंट में गोल्ड बढ़ेगा। ज्वेलर्स के लिए खुशखबरी यह है कि त्यौहारों और विवाह के सीजन के समय गोल्ड की कीमतों और प्रीमियम में उछाल होगा। इसके साथ ही एक संभावना इस बात की भी है कि सरकार शायद, आयात ड्यूटी में बदलाव, टैक्स नीति, घरेलू गोल्ड की स्क्रैप आपूर्ति को प्रोत्साहन देने के लिए पॉलिसी के लेवल पर बदलाव करेगी, या उस पर गहनता से विचार करेगी। इस सबके बावजूद गोल्ड सस्ता तो नहीं होगा, यह सभी मान रहे हैं। हालांकि गोल्ड नीचे गिरेगा, यह मानने वाले भी कुछ लोग गोल्ड इंडस्ट्री में हैं, लेकिन उनके पास इसके कोई खास तर्क नहीं है। 

वैसे तो गोल्ड महंगा होता जा रहा है, और ज्यादातर जानकार कह रहे हैं कि यह आने वाले वक्त में और महंगा ही होगा, क्योंकि दुनिय़ा भर के हालात इस महंगे होने के समर्थन में हैं। अमेरिका की ट्रेजरी और उसके गोल्ड रिजर्व का रेश्यो भी बताता है कि गोल्ड की कीमतों में अब तक की सबसे बड़ी तेजी आ सकती है। फिर भी कुछ लोगों को आशंका है कि गोल्ड में बेहद तेजी के बाद हालात सन 1940  जैसे हो सकते हैं। सन 1939 में 10 ग्राम गोल्ड की कीमत लगभग 31.75 रुपये थी, जो सन 1940 में बढक़र 36.05 रुपये हो गई। लेकिन सन 1940 में गोल्ड के रेट्स 33.85 रुपये रहे, जो 1944 तक इसी के आस पास घूमते रहे। मतलब, कुछ लोगों की बात मान लें, तो गोल्ड आने वाले दिनों में गिरेगा। गोल्ड के बारे में आने वाले दिनों में नकारात्मक ट्रेंड की बात करने वाले ज्यादातर लोगों के पास कोई खास तर्क नहीं है, मगर फिर भी उनकी बात पर गौर किया जाना चाहिए।  

बात यह है कि दूसरे विश्व युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड की उपलब्धता अत्यधिक मात्रा में बढ़ गई थी। कई यूरोपीय देशों ने नाजिय़ों के हाथों में पडऩे से अपने गोल्ड भंडार को बचाने के लिए उसे अमेरिका और ब्रिटेन भेज दिया था। जर्मनी से बचाने के लिए नॉर्वे ने अपना 50 टन गोल्ड इंग्लैंड के रास्ते अमेरिका भेजा। बाद में, इस गोल्ड का इस्तेमाल नॉर्वे की निर्वासित सरकार द्वारा किया गया था। बेल्जियम और फ्रांस जैसे कई अन्य यूरोपीय देशों ने भी अपने गोल्ड के भंडार को नाजिय़ों से बचाने की कोशिश की थी। इनमें से कुछ गोल्ड तो जर्मनी के हाथ लग गया, जबकि कुछ को सुरक्षित जगह पर ले जाया गया। इन घटनाओं ने गोल्ड को एक सुरक्षित निवेश का दर्जा दिया, जो युद्ध और आर्थिक अस्थिरता के समय में और अधिक महत्वपूर्ण हो गया। इसके साथ ही दुनिया के कई देश आर्थिक संकट में होने के कारण उन्होंने गोल्ड खरीदना बहुत ही कम कर दिया था। विभिन्न देशों के गोल्ड भंडारों के अमेरिका के पास पहुंचने से 1930 से 1940 के बीच अमेरिका का गोल्ड भंडार लगभग तीन गुना हो गया था। इसकी एक वजह 1934 का गोल्ड रिज़र्व एक्ट भी था, जिसके तहत प्राइवेट गोल्ड की मालिकी को व्यापक पैमाने पर नियंत्रित किया गया था, अर्थात एक कोई भी व्यक्ति निर्धारित लिमिट से ज्यादा गोल्ड नहीं रख सकता था।  इसी कारण दुनिया भर में 1940 में गोल्ड की कीमतों में कमी आई, जबकि इससे पहले के कुछ वर्षों में इसमें बहुत तेजी से वृद्धि हुई थी। 

दुनिया में चारों तरफ नजर दौड़ाई जाए, तो विश्व अर्थव्यवस्था कई तरह की नई चुनौतियों से जूझ रही है। अमेरिका और यूरोप की आर्थिक मंदी की आशंका, चीन की धीमी विकास दर और उभरते देशों की वित्तीय अस्थिरता निवेशकों को सुरक्षित विकल्प तलाशने पर मजबूर करती है। ऐसे समय में गोल्ड सबसे विश्वसनीय एसेट माना जाता है। गोल्ड की कीमतों का सीधा संबंध अमेरिकी डॉलर से है। जब डॉलर कमजोर होता है तो गोल्ड महंगा हो जाता है क्योंकि अन्य मुद्राओं में निवेशक आसानी से गोल्ड की ओर रुख करते हैं। साथ ही, फेडरल रिजर्व और अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में नरमी या कटौती भी गोल्ड की कीमतों को सहारा देती है। रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा।, पश्चिम एशिया में अस्थिरता बढ़ती जा रही है। और अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक तनाव जैसी परिस्थितियां निवेशकों में भय और अनिश्चितता पैदा कर रही हैं। ऐसे समय में सुरक्षित पनाह के रूप में गोल्ड सबसे पहले खरीदा जाता है, जो कि दुनिया के लगभग सारे देश लगातार कर भी रहे हैं। केंद्रीय बैंकों की गोल्ड में खरीदारी पर नजर डालें, तो पिछले कुछ वर्षों में चीन, भारत, तुर्की और रूस जैसे देशों के केंद्रीय बैंकों ने बड़े पैमाने पर गोल्ड खरीदा है। इसका उद्देश्य अपनी विदेशी मुद्रा भंडार को विविध बनाना और डॉलर पर निर्भरता कम करना है। इस निरंतर मांग ने गोल्ड की कीमतों को ऊपर धकेला है। 

गोल्ड की बढ़ती कीमतों और ब्याज दरों के परिदृश्य को देखें, तो अमेरिका में फेडरल रिजर्व ने भले ही वर्तमान में ब्याज दरों को थोड़ा कम करने का रास्ता अपनाया है, लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि अपनी अगली मीडिंग में फेडरल रिजर्व कुछ दर कटौती जरूर करेगा। क्योंकि ब्याज दरें जितनी अधिक होंगी, गोल्ड जैसी ब्याज नहीं देने वाली जींस, की अपेक्षित लागत भी उतनी ही बढ़ेगी। जब ब्याज दरें कम हों, तब गोल्ड का आकर्षण बढ़ता है, क्योंकि दूसरे निवेशों से कम रिटर्न मिलने की संभावना होती है। डॉलर की कमजोरी भी गोल्ड के रेट्स में बढोतरी का एक सबसे बड़ा कारण है। डॉलर की मजबूती गोल्ड की कीमतों को दबाती है क्योंकि गोल्ड आमतौर पर डॉलर में कीमत तय होता है। जब डॉलर कमजोर होता है, तो अन्य मुद्राओं में रखने वाले निवेशकों के लिए गोल्ड सस्ता हो जाता है और मांग बढ़ जाती है। वर्तमान में डॉलर में गिरावट की आशंका बनी हुई है। इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच व्यापार टकराव बढ़ता जा रहा है। टैरिफ बढ़ाने, प्रतिवाद करने जैसी घटनाएं गोल्ड की बढ़ोतरी का कारण है, इसी कारण टीन गोल्ड की खरीदी जारी रखे हुए हैं। ये अस्थिरताएं गोल्ड जैसे सुरक्षित आश्रय की मांग को बढ़ाते हैं। निवेशकों को डर है कि ये टकराव वैश्विक आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे निवेशों में रुझान जोखिम कम कर सुरक्षित संपत्तियों की ओर जाएगा।

गोल्ड  में आने वाली संभावित मंदी से डरना जरूरी नहीं है, क्योंकि ऐसा होना संभव ही नहीं है। मंदी की संभावना की नकारात्मकता के डर को दूर करने के लिए बाजार के जानकारों का साधारण सा तर्क है कि वर्तमान में दूसरे विश्व युद्ध के बाद की तरह, ना तो अब गोल्ड की उपलब्धता बढ़ी है, ना ही अमेरिका के पास गोल्ड का भंडार बहुत ज्यादा बढ़ रहा है, ना ही गोल्ड की उपलब्धता बढ़ रही है और ना ही दुनिया के विभिन्न देशों के रिजर्व बैंक गोल्ड खरीदना कम कर रहे हैं। फिर, अमेरिका के पास मौजूद गोल्ड रिजर्व इसकी सिर्फ 2 फीसदी वैल्यू के बराबर है। 1970 के दशक में यह अनुपात 17 फीसदी था और 1940 के दशक में करीब 40 प्रतिशत था।  अगर आज फिर से 17 फीसदी के स्तर पर पहुंचना हो तो गोल्ड की कीमत भारत में 1 लाख 10 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम तो किसी भी हालत में बनी रहेगी। पिछले कुछ महीनों को देखें, तो वैश्विक वित्तीय संकट के हालात बाद से दुनिया भर के देशों की सेंट्रल बैंकों ने गोल्ड की भारी मात्रा में खरीद की है और अब यह 50 साल की सर्वाधिक ऊंचाई पर है। वहीं अमेरिका के गोल्ड रिजर्व पिछले 90 सालों के निचले स्तर पर हैं। 

गोल्ड रिजर्व के मामले में पिछले 90 सालों का यह बेहद भारी और ऐतिहासिक फासला अमेरिका को अपनी रिजर्व गोल्ड पॉलिसी पर एक बार फिर नए सिरे से सोचने को मजबूर कर सकता है। इतिहास की बात करें, तो वैश्विक स्तर पर डॉलर जब जब कमजोर होता है, तो गोल्ड और अन्य कमोडिटी की कीमतों के लिए वह तेजी लाने में सहायक रहा है। गोल्ड के इंटरनेशनल मार्केट के कई जानकार और विभिन्न अर्थशास्त्रियों की राय में अमेरिकी डॉलर फिलहाल अपनी ऐतिहासिक ऊंचाई और ओवर वैल्यूएशन पर तैर रहा है। तो गोल्ड कमजोर कैसे होगा, यह किसी की भी समझ से परे हैं। गोल्ड के वर्तमान हालात, दुनिया की जरूरतों तथा इसकी आर्थिक स्थिति को बचाए रखने की ताकत पर फोकस करें, तो कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि गोल्ड घटेगा नहीं। क्योंकि गोल्ड की कीमतें केवल ज्वेलरी या निवेश की घरेलू मांग से प्रभावित नहीं होतीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक और वित्तीय हालात भी इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। जब तक दुनिया में अनिश्चितता और अस्थिरता बनी रहेगी, तब तक गोल्ड की कीमतों में मजबूती की संभावना बनी रहेगी।


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गोल्ड के रेट्स जब बहुत ज्यादा बढ़ते हैं, तो थोड़े - बहुत घटते भी है। लेकिन इसे गोल्ड के रेट्स का गिरना नहीं माना जा सकता। बाजार में जो लोग गोल्ड के रेट घटने की आशा में बैठे हैं, उनकी व्यावसायिक समझ को कम करने आंकना होगा, क्योंकि गोल्ड कभी भी घटता नहीं है।


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कुछ लोगों को आशंका है कि गोल्ड घटेगा और 1930 - 1940 के दशक में पहुंच जाएगा। तब रेट बहुत गिर गए थे। दुनिया के कई देशों ने तब आर्थिक संकट में गोल्ड खरीदना बंद कर दिया था। लेकिन अब तो कई देश हर रोज गोल्ड की खरीदी का नया कीर्तिमान बना रहे हैं।


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सन 1930 से 1940 के बीच गोल्ड का माहौल अलग था। तब दुनिया में माहौल विश्व युद्ध का था और दूसरे देशों द्वारा अमेरिका में गोल्ड रखने के कारण वहां का गोल्ड भंडार लगभग बहुत बढ़ गया, तो गोल्ड के रेट गिरे थे। लेकिन बाद में बहुत तेजी से वृद्धि हुई, यह भी समझना होगा।





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कोई कुछ भी कहे, लेकिन गोल्ड के रेट्स कम नहीं होंगे, क्योंकि इससे दुनिया के विभिन्न देश अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलन दे रहे हैं। चीन बड़े पैमाने पर गोल्ड खरीद रहा है, दूसरे कई देश भी खरीद रहे है। इतने बड़े पैमाने पर गोल्ड बिक रहा है, तो सस्ता कैसे होगा, यह समझ में नहीं आता।


 
 
 

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