top of page

सिल्वर फिर पकड़ेगा तेजीअक्टूबर 2025 में ऑल टाइम हाई से धड़ाम पर एक नजर

  • Aabhushan Times
  • Nov 19
  • 7 min read
ree

सिल्वर की सन 2024-25 में औद्योगिक मांग मजबूत रही, पर सप्लाई कुछ वर्षों में बेहद प्रभावित रही जिससे 2025 में इसके रेट्स पर ऊपर की ओर दबाव पड़ा। भारत में घरेलू कीमतों पर सीधा विपरीत असर पड़ा लेकिन वैश्विक स्तर पर माना जा रहा है कि यह गिरावट अस्थायी है। सिल्वर आने वाले दिनों में 2 लाख तक पहुंच सकता है।


इस साल में अक्टूबर 2025 का महीना वैश्विक कीमती धातु बाजारों के लिए ऐतिहासिक रहा। गोल्ड के साथ साथ सिल्वर ने भी नए रिकार्ड बनाए। लेकिन सिल्वर जितनी तेजी से यह ऊपर चढ़ा, उतनी ही तेजी से नीचे भी गिर गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिल्वर ने 54 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस का नया रिकॉर्ड बनाया, और भारत में भी यह 2 लाख रुपए प्रति किलो पर पहुंच गया। किंतु कुछ ही हफ्तों में इसके रेट 20 फीसदी तक गिर गए। भारतीय बाजार के लिए यह गिरावट किसी अचानक झटके की तरह थी, जिसने निवेशकों और उद्योगों दोनों को चौंका दिया। परंतु इस उतार - चढ़ाव के पीछे के कारण, इसका ऐतिहासिक पैटर्न, और भविष्य की संभावनाएं कहीं अधिक गहराई में छिपी हैं। ताजा माहौल में, सिल्वर में उछाल के बाद जो गिरावट आई, उसने यह साबित कर दिया कि सिल्वर का बाजार आज भी उतना ही अस्थिर है जितना आधी सदी पहले था। लेकिन जानकार इभी भी कह रहे हैं कि सिल्वर को आगे ही जाना है, और आने वाले कुछ ही नहीनों में सिल्वर पिर से 2 लाख के लेवल पर खड़ा रहेगा। 


सिल्वर के  वैश्विक परिदृश्य देखें, तो सिल्वर अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई से अचानक फिसलन पर पहुंच गया। दरअसल, सिल्वर की कीमतों में उछाल 2024 के मध्य से ही शुरू हुआ था, जब विश्वभर में औद्योगिक मांग तेजी से बढऩे लगी। सोलार ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सिल्वर की जरूरत लगातार बढ़ रही थी। इन सभी क्षेत्रों में उपयोग की मात्रा पिछले दो वर्षों में लगभग 25 से 30 फीसदी तक बढ़ी। इस बढ़ी हुई खपत के मुकाबले खनन उत्पादन सीमित रहा। खासकर लैटिन अमेरिका और अमेरिका की कुछ प्रमुख खदानों में उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई। तो, सिल्वर के रेट तो बढऩे ही थे। सन 2025 में सिल्वर की मांग और आपूर्ति का अंतर इतना बढ़ा कि वल्र्ड सिल्वर सर्वे के अनुसार लगातार तीसरे साल सिल्वर मार्केट में सप्लाई में कमी का माहौल बना रहा। यही कारण था कि निवेशकों ने सिल्वर को अगली गोल्ड रैली के रूप में देखना शुरू किया और सिल्वर के एक्सचेंजट्रेडेड फंड्स में भारी निवेश हुआ। परिणामस्वरूप अक्टूबर की शुरुआत में सिल्वर ने 50 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस का स्तर पार किया और कुछ ही दिनों में 54 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस तक पहुंच गया। यह 1980 के झटके के बाद का सबसे ऊंचा स्तर था। अक्टूबर 2025 में सिल्वर के रिकॉर्ड हाई के बाद अचानक आई गिरावट के पीछे कई कारक काम कर रहे थे। पहला कारण था प्रॉफिट मेकिंग। यानी जिन निवेशकों ने 2024 से ही कम भाव पर सिल्वर खरीदी थी, उन्होंने ऊंचे स्तर पर मुनाफा बुक कर लिया। बड़े फंड्स और ट्रेडर्स ने भी तेजी से शॉर्ट पोजीशन ली, जिससे कीमतों पर गिरने का दबाव बढ़ा। दूसरा कारण था सिल्वर की वास्तविक आपूर्ति में अस्थायी करेक्शन। लंदन मेटल एक्सचेंज और कॉमेक्स के कुछ वॉल्ट्स में उस समय बड़ी मात्रा में भंडार सामने आया, जिससे तत्काल सिल्वर की आपूर्ति बढ़ी और स्पॉट प्रीमियम कम हुआ। तीसरा कारण रहा डॉलर की मजबूती और अमेरिकी फेडरल बैंक की नीतियों को लेकर बने अनुमान। जैसे ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखे, डॉलर सूचकांक चढ़ा और कमोडिटी बाजारों में निवेश घटने लगा। डॉलर के मजबूत होते ही सामान्यत: गोल्ड व सिल्वर जैसी कीमती धातुएं कमजोर पड़ती हैं, और यही सिल्वर के साथ भी हुआ। इन सबके साथ सिल्वर के बाजार में ट्रेडिंग का अनुपात बहुत बड़ा है। यह बाजार गोल्ड की तुलना में छोटा है और कुछ ही बड़े सिलेवर प्लेयर्स के निर्णय कीमतों में भारी बदलाव ला सकते हैं। यही वजह रही कि कुछ ही दिनों में सिल्वर 54 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस से गिरकर 45 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस तक नीचे आ गई। हालांकि, सिल्वर के पिछले 50 साल के इतिहास को देखें तो उतारचढ़ाव इसका स्थायी स्वभाव लगता है। सन 1980 में अमेरिकी निवेशक हंट ब्रदर्स ने बड़ी मात्रा में सिल्वर खरीदकर कृत्रिम रूप से कीमतों को 50 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस तक पहुंचा दिया था। पर कुछ ही महीनों में जब सिल्वर के निर्णयकर्ताओं ने सख्ती दिखाई, तो बाजार ढह गया और सिल्वर की कीमतें सीधे 10 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस से नीचे आ गई थी। सन 2008 से सन 2011 के बीच वित्तीय संकट और मुद्रास्फीति के डर ने फिर सिल्वर को ऊपर धकेला और यह 48 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस तक पहुंचा, पर 2013 में फिर सिल्वर में 60 फीसदी की गिरावट आ गई। सन 2020-21 में महामारी के दौरान सिल्वर ने फिर तेजी की रैली दिखाई, लेकिन बाद में फिर से गिरावट आई। यह पैटर्न बताता है कि हर बार जब आर्थिक अनिश्चितता, औद्योगिक मांग या मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा, तब सिल्वर तेजी से उछला — और जब स्थितियां सामान्य हुईं, तब उतनी ही तेजी से गिरावट भी आ गई।


वल्र्ड सिल्वर इंस्टीट्यूट के अनुसार सन 2024 में सिल्वर की वैश्विक मांग लगभग 1.16 बिलियन औंस रही, जो रिकॉर्ड थी। इसमें 55 फीसदी हिस्सा औद्योगिक उपयोग का था, जबकि ज्वेलरी और निवेश मिलाकर बाकी हिस्सा 45 फीसदी रहा हैं। लेकिन सिल्वर का वैश्विक उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ पाया। सिल्वर की माइनिंग लागत में लगातार बढ़ोतरी होती रही, सिल्वर खदानों की नई परियोजनाओं की पर्यावरणीय मंजूरी में देरी भी हुई और कुछ देशों में राजनीतिक अस्थिरता ने भी सिल्वर की आपूर्ति को बाधित किया। भारत जैसे देशों में भी यह असंतुलन स्पष्ट है। भारत सिल्वर के सबसे बड़ा उपभोक्ता देशों में है। हमारे देश में मिठाई से लेकर पूजन सामग्री से लेकर निवेश से लेकर ज्वेलरी सहित दवाईयों और औद्योगिक उत्पादों में भी इसका भरपूर उपयोग होता है। भारत सरकार ने सन 2025 में सिल्वर पर इंपोर्ट ड्य़ूटी को 15 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी किया, जिससे सिल्वर के इंपोर्ट में आसानी हुई। परंतु वैश्विक स्तर पर सिल्वर की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ीं कि इसका असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा। आप जानते ही हैं कि सिल्वर की खनन प्रक्रिया बेहद जटिल है क्योंकि यह अक्सर कॉपर, जिंक या लीड आदि की खदानों में सह उत्पाद  के रूप में निकलती है। इसका अर्थ है कि अगर इन अन्य धातुओं की मांग या कीमत घटे, तो सिल्वर का उत्पादन भी प्रभावित होता है, क्योंकि उन धातुओं की मांग घटते ही उनका खनन भी कम हो जाता है, तो सिल्वर का खन  कम ही मिलता है। इसके अलावा, नई खदानें शुरू करने की लागत लगातार बढ़ रही है। सन 2024-25 में कई देशों में सिल्वर की खनन का खर्च बढक़र 20 से 22 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस तक पहुंच गया। काराण सीधा सा बाजार के गणित का है, अत: यदि बाजार मूल्य इस लेवल से बहुत अधिक नहीं है, तो खनन कंपनियां नए विस्तार में निवेश भी नहीं करतीं, क्योंकि उसमें कोई लाभ नहीं होता, बल्कि हानि ही पक्की है। इस वजह से भी सिल्वर की सप्लाई सीमित रहती है, और जब भी मांग बढ़ती है, इसकी कीमतें तेज उछाल मारना लगती हैं। यही स्थिति इस साल 2025 में भी देखने को मिली। भारत में सिल्वर के दाम सीधे अंतरराष्ट्रीय कीमतों से जुड़े हैं। लेकिन रुपये की डॉलर एक्सटेंज रेट्स, इंपोर्ट ड्यूटी और घरेलू मांग इसका स्थानीय प्रभाव तय करते हैं। अक्टूबर 2025 में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिल्वर 54 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस तक पहुंचा, तब भारत में इसकी कीमत 2 लाख प्रति किलो से ऊपर चली गई। दीपावली और शादियों के सीजन में सिल्वर में निवेश और ज्वेलरी की मांग भी बहुत बढ़ी। लेकिन जैसे ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट आई, भारत में भी भाव 1.50 लाख रुपए प्रति किलो के नीचे फिसल गए। कई सिल्वर ट्रेडर्स ने इसे सामान्य करेक्शन बताया, लेकिन रिटेल निवेशकों में घबराहट देखी गई।


 सिल्वर के मामले में आने वाले दो वर्षों, अर्थात 2026 और 2027 का संभावित परिदृश्य का आंकलन करें, तो सिल्वर की भविष्यवाणी करना हमेशा कठिन रहा है, क्योंकि यह धातु गोल्ड और औद्योगिक दोनों बाजारों से जुड़ी रहती है। फिर भी 2026-27 के लिए तीन संभावित परिदृश्य बनते हैं। पहला जो संतुलित और मध्यम परिदृश्य यह है कि यदि सिल्वर की औद्योगिक मांग स्थिर रहती है और खनन धीरे - धीरे बढ़ता है, तो सिल्वर की कीमतें 2026 के अंत तक भारत में 1.70 से 1.90 रुपए प्रति किलो के बीच रह सकती है। और इसी हिसाब से 2027 के अंत में सिल्वर 2 लाख से सवा 2 लाख रुपए प्रति किलो तक जा सकता है। इस स्थिति में बाजार संतुलित रहेगा। लेकिन तेजी वाले परिदृश्य की बात करें, तो यदि खनन में रुकावटें जारी रहीं और सौर ऊर्जा व इलेक्ट्रिक वाहन सेक्टर में मांग और बढ़ी, तो कीमतें 2026 के अंत तक ढाई लाख रुपए प्रति किलो और 2027 में 2 लाख रुपए प्रति किलो तक भी जा सकती हैं। लेकिन बात अगर मंदी की करें, तो अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ, महंगाई घट गई और औद्योगिक वृद्धि धीमी पड़ी, तो कीमतें 2026 के अंत तक 45 यूएस डॉलर प्रति ट्रॉय औंस  से बहुत तक नीचे फिसल भी सकती हैं, यानी भारत में सिल्वर के रेट का चक्र प्रति किलो 1.50 लाख के आसपास मंडराता रहेगा। इनमें से कौनसा परिदृश्य साकार होगा, यह आने वाले महीनों की मौद्रिक नीति, तकनीकी हालात, खनन की तेजी और वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा पर निर्भर करेगा।


निवेशकों और उद्योग के लिए सिल्वर एक सबक के रूप में सदा खड़ा रहा है। बाजार के जानकार मानते हैं कि सिल्वर में निवेश हमेशा लंबी अवधि की सोच से करना चाहिए। क्योंकि, इसमें अस्थिरता इतनी अधिक है कि अल्पकालिक निवेशक अक्सर नुकसान उठा बैठते हैं। जानकार कहते हैं कि  निवेशकों के लिए बेहतर रणनीति यह है कि वे इसे धीरे - धीरे खरीदें और लंबे समय तक रखें। सिल्वर के एक्सपर्ट मानते हैं कि ट्रेडरों को भी स्टॉप लॉस का खास ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि कीमतें कुछ ही घंटों में बड़े बदलाव दिखा सकती हैं। इसके अलावा उद्योगों को, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स और ज्वेलरी सेक्टर को, हेजिंग रणनीतियों पर ध्यान देना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय उतार - चढ़ाव से बचाव हो सके। क्योंकि सिल्वर का स्वभाव अब भी वही पुराना है और आगे भी इसके बदलने के हालात बेहद कम ही है। दरअसल, सिल्वर की चाल पर भरोसा केवल उन्हीं को करना चाहिए जो सिवल्वर की दीर्घकालिक निवेश और जरूरतों को समझते हैं। इसके बावजूद मान्यता यही है कि सन 2026-27 में सिल्वर एक बार फिर नई ऊंचाइयों को छू सकता है, पर गिरावट के झटके भी उसी तरह आ सकते हैं। सिल्वर के लिए यही सबसे बड़ा सबक है, क्योंकि सिल्वर हमेशा चमकेगा, लेकिन कभी सीधा - सीधा नहीं।


ree







राहुल मेहता - सिल्वर एम्पोरियम


सिल्वर का इतिहास ही सदा से ही उतार - चढ़ाव वाला रहा है। सिल्वर अचानक बहुत तेजी से बढ़ता है, तो उतनी ही तेजी से घट भी जाता है। मेरी राय में सिल्वर फिर से तेजी पकड़ेगा और 2027 के अंत तक 2.5 लाख प्रति किलो तक भी जा सकता है।

ree







विनय शोभावत - आनंद दर्शन सिल्वर्स


सिल्वर में सन 2025 की बहुत तेज और अचानक आए 25 फीसदी के करेक्शन ने यह साबित कर दिया कि सिल्वर का बाजार सदियों से जैसा उतार - चढ़ाव वाला रहा है, वैसा ही आज भी है, बेहद भावनात्मक, अप्रत्याशित प्रतिक्रियाशील और अवसरों से भरा हुआ।

ree







हेमंत बड़ोला - वर्धमान ९२५


सिल्वर के मामले में यह पहला खयाल रखना चाहिए कि यह न तो केवल कीमती धातु है और न ही सिर्फ औद्योगिक मेटल, यह दोनों का मिश्रण है। यही कारण है कि सिल्वर की कीमतें हर बार वैश्विक अर्थव्यवस्था की नब्ज़ के साथ धडक़ती हैं।

ree







आयुष सिंघवी - अरिहंत ९२५ सिल्वर


सिल्वर में अक्टूबर 2025 के ऑल टाइम हाई का मामला इतिहास में सदा दर्ज रहेगा, लेकिन यह भी दर्ज रहेगा कि अचानक 30 फीसदी धड़ाम भी हुआ। हमारे देश में सिल्वर का जरूरतें काफी ज्यादा है, इंटस्ट्रीयल जरूरतें भी बढ़ती रहेंगी, तो रेट तो बढ़ेंगी ही।



 
 
 

Comments


Top Stories

Bring Jewellery news straight to your inbox. Sign up for our daily Updates.

Thanks for subscribing!

  • Instagram
  • Facebook

© 2035 by Aabhushan Times. Powered and secured by Mayra Enterprise

bottom of page