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अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ काभारतीय रत्न और आभूषण निर्यात पर प्रभाव

  • Aabhushan Times
  • Aug 7
  • 5 min read
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किरीट भंसाली, चेयरमेन-जीजेईपीसी


अमेरिका द्वारा सभी भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा अत्यंत चिंताजनक है। यह कदम भारत की अर्थव्यवस्था पर व्यापक और गहरे प्रभाव डालेगा—महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित होंगी, निर्यात पर रोक लगेगी और हजारों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। विशेष रूप से रत्न और आभूषण क्षेत्र पर इसका भारी असर पड़ेगा। अमेरिका हमारा सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जहां हम हर साल $10 बिलियन से अधिक का निर्यात करते हैं—जो कि इस उद्योग के कुल वैश्विक व्यापार का लगभग 30 प्रतिशत है। इतने बड़े पैमाने पर लगाया गया यह टैरिफ इस क्षेत्र के लिए बेहद नकारात्मक साबित होगा।


भारत के रत्न और आभूषण निर्यात में अमेरिकी बाजार पर भारी निर्भरता है। विशेष रूप से SEEPZ  स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (SEZ)) से 85 प्रतिशत निर्यात अमेरिका को होता है, जो लगभग 50,000 लोगों को रोजग़ार प्रदान करता है। कट और पॉलिश डायमंड की बात करें तो भारत का आधे से अधिक निर्यात अमेरिका जाता है। ऐसे में इस प्रकार के रिवाइस्ड टैरिफ वृद्धि से पूरी इंडस्ट्री ठप होने की कगार पर आ सकती है, जिससे मूल्य श्रृंखला के हर हिस्से छोटे कारीगरों से लेकर बड़े निर्माताओं पर भारी दबाव पड़ेगा।


चिंता की बात यह भी है कि तुर्की, वियतनाम और थाईलैंड जैसे प्रतिस्पर्धी मैन्युफैक्चरिंग सेंटर को अमेरिका क्रमश: 15%, 20% और 19% जैसे कम टैरिफ का लाभ मिलता है। इसके मुकाबले भारत के उत्पाद अब अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी नजर आएंगे। यदि इस असंतुलन को दूर नहीं किया गया, तो अमेरिका के लिए भारत की दीर्घकालिक आपूर्तिकर्ता की स्थिति कमजोर पड़ सकती है। हम इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि व्यापार को मेक्सिको, कनाडा, तुर्की, यूएई या ओमान जैसे कम टैरिफ वाले देशों के माध्यम से पुन: मार्गित किया जा सकता है। यह न केवल वैध व्यापार की भावना को कमजोर करेगा, बल्कि पारदर्शिता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा।


इन सभी चुनौतियों के बावजूद, भारतीय रत्न और आभूषण उद्योग की मजबूती बरकरार है। हाल ही में आयोजित आईआईजेएस प्रीमियर 2025, जो दुनिया का सबसे बड़ा आभूषण फेर है, उसकी अपार सफलता इस बात का प्रमाण है कि घरेलू मांग अत्यंत मजबूत है। इस आयोजन से रू 70,000 करोड़ से रू 1 लाख करोड़ के व्यापार की संभावनाएं जताई गईं। वर्तमान में भारतीय घरेलू बाजार ८5 बिलियन का है, और अगले दो वर्षों में इसके रू 130 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। विशेष रूप से डायमंड सेक्टर के लिए यह घरेलू वृद्धि एक सहारा प्रदान कर सकती है। साथ ही, जीजेईपीसी निर्यात बाजारों में विविधता लाने के लिए नए क्षेत्रों की खोज में सक्रिय है। आगामी सऊदी अरब ज्वेलरी एग्ज़ीबिशन (SAJEX) इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो उभरते क्षेत्रों में नए अवसरों के द्वार खोलने और भारत के निर्यात गंतव्यों का विस्तार करने का प्रयास है।


भारतीय रत्न और आभूषण परिषद जीजेईपीसी ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह अमेरिका द्वारा सभी भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 50% टैरिफ के संदर्भ में तत्काल राहत प्रदान करे। परिषद ने स्पष्ट किया कि वर्तमान परिस्थिति में व्यापार वार्ताएं संभव नहीं हैं, लेकिन नीति सुधारों और व्यापक समर्थन के माध्यम से उद्योग को इस संकट से उबारा जा सकता है। जीजेईपीसी ने यह भी कहा कि एक जिम्मेदार उद्योग और देश के नागरिक होने के नाते, वे सरकार के साथ एकजुट हैं और राष्ट्र के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्यरत रहेंगे। जीजेईपीसी ने सरकार से जिन राहत उपायों की मांग की है, उनमें सबसे प्रमुख है एक लक्षित ड्यूटी ड्रॉबैक योजना, जो अगस्त से दिसंबर 2025 तक अमेरिकी बाजार में निर्यात किए गए रत्न और आभूषणों पर लागू नए टैरिफ का 25% से 50% तक हिस्सा कवर करे। इससे न केवल वित्तीय दबाव कम होगा, बल्कि ऑर्डर रद्द होने की आशंका भी घटेगी और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति बनी रहेगी। परिषद ने MAI योजना के तहत बाजार विविधीकरण के लिए वित्तीय सहायता की मांग भी की है, ताकि सऊदी अरब जैसे नए बाजारों की खोज को बढ़ावा मिले—जिसमें 11 से 13 सितंबर 2025 को जेद्दाह में होने वाली SAJEX एक्जीबिनशन और सऊदी में IJEX जैसी स्थायी प्रदर्शनी केंद्र की स्थापना शामिल है।


जिन कार्यशील पूंजी सुविधाओं को स्वीकृति प्रदान की गई है, उनके संदर्भ में यह अनुरोध किया गया है कि ऋणदाता संस्थानों को 1 अगस्त 2025 से 1 जनवरी 2026 तक छह माह की अवधि के लिए ब्याज भुगतान स्थगित करने की अनुमति दी जाए। यह राहत उसी प्रकार दी जा सकती है, जैसी कोविड-19 अवधि के दौरान दी गई थी, ताकि उद्योग को वर्तमान आर्थिक दबाव से कुछ राहत मिल सके। SEZ (स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन) में स्थित इकाइयों को रिवर्स जॉब वर्क की अनुमति देने से वे अपनी मशीनरी और श्रमिकों का उपयोग घरेलू शुल्क क्षेत्र (DTA) के लिए आभूषण निर्माण एवं आपूर्ति में कर सकेंगी, जो इस संकट के समय में उद्योग के लिए एक सहारा बन सकता है। ऐसी स्थिति में, उत्पादित ज्वेलरी पर शुल्क केवल उन ड्यूटी-फ्री इनपुट्स के आधार पर लगाया जाना चाहिए, जिनका उपयोग SEZ इकाइयों ने DTA के लिए निर्माण करते समय किया है। ऑर्डर रद्द होने की स्थिति में कार्यशील पूंजी फंस सकती है, जिससे SEZ इकाइयों के हृक्क्र बनने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। ऐसी स्थिति में यह सुझाव दिया गया है कि SEZ इकाइयों को अपना मौजूदा स्टॉक या पाइपलाइन घरेलू बाजार (DTA) में बेचने की अनुमति दी जाए। इस बिक्री पर शुल्क केवल उन ड्यूटी- फ्री इनपुट्स के मूल्य पर लगाया जाना चाहिए, जिनका उपयोग आभूषण निर्माण में किया गया है। SEZ इकाइयों को रिवर्स जॉब वर्क और DTA बिक्री की अनुमति देने से लगभग 1.25 लाख कारीगरों, श्रमिकों और कटर्स की आजीविका को सहारा मिलेगा और वे इस संकट के समय में न्यूनतम स्तर पर भी संचालन बनाए रख सकेंगे।


प्री-शिपमेंट वित्तीय राहत-शिपमेंट में संभावित देरी को देखते हुए, यह सुझाव दिया गया है कि बैंकों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे प्री-शिपमेंट ऋण की नियत तिथि को कम से कम 90 दिनों तक बिना किसी दंड के बढ़ाएं, जिससे निर्यातकों को अस्थायी राहत मिल सके। ब्याज समानिकरण योजना - ब्याज समानिकरण योजना ने विशेष रूप से MSME निर्यातकों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि भारत में ब्याज दरें प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में काफी अधिक हैं। इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली ब्याज सबवेंशन को पुन: शुरू किया जाना चाहिए, ताकि निर्यातकों को आवश्यक वित्तीय सहायता मिल सके। 


राहत पैकेज - कोविड काल की तर्ज पर सरकार या भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा रत्न एवं आभूषण क्षेत्र के लिए विशेष अल्पकालिक राहत पैकेज या उपायों की घोषणा की जानी चाहिए, जिससे उद्योग को तत्काल वित्तीय संबल मिल सके और वह इस संकट से उबर सके। रत्न और आभूषण क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखने के लिए यह आग्रह किया गया है कि रेटिंग एजेंसियां वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र की क्रेडिट रेटिंग को स्थिर बनाए रखें। अचानक लगाए गए उच्च टैरिफ के कारण व्यापार में आई सुस्ती अस्थायी है, इसलिए यह सुनिश्चित किया जाए कि इस कारण से रत्न और आभूषण क्षेत्र की रेटिंग में कोई गिरावट न हो। यह कदम उद्योग में निवेशकों का विश्वास बनाए रखने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

 
 
 

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